तुम्हारे प्रेम से उठी हर दर्द की आहह
मैनै काली मिट्टी में गाड दी थी,
पिडाओं से उठे आसुओं की लहरों को भी रहरहकर वही बहां आयी थी !
फिर कुछ दिन बितें..
सुना है वहां कुछ पौधे और फूल उग आये है ..
तुम घंटो बैठकर मुझें ढुंढा करते हो उन पत्तो में फ़ूलों मे ..
कहेते हो मेरी खुशबू आती है वहां की मिटटी से
और मै
मै न जाने कब मिट्टी हो गयी पता ही नहीं चला ..
रश्मि ..
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