दिन गुमसुम ढलता रहता है।
वो खुद को छलता रहता है ।।
चार दीवारी छोड़कर घर की ।
क्यों दर दर फिरता रहता है ।।
आस लगी है मन में लेकिन ।
मन ही मन कुढता रहता है ।।
कुछ भी कहता नहीं किसी से ।
फिर भी सब कहता रहता है ।।
कौन से दुःख से करे किनारा।
हर गम दिल सहता रहता है ।।
चेहेरेपर रख मुस्कान नुमाया।
वो अश्क छुपाता रहता है ।।
आंख चुराकर मुझसे मेरा ।
चेहरा वो पढ़ता रहता है ।।
रश्मी मदनकर
09 feb 18
वो खुद को छलता रहता है ।।
चार दीवारी छोड़कर घर की ।
क्यों दर दर फिरता रहता है ।।
आस लगी है मन में लेकिन ।
मन ही मन कुढता रहता है ।।
कुछ भी कहता नहीं किसी से ।
फिर भी सब कहता रहता है ।।
कौन से दुःख से करे किनारा।
हर गम दिल सहता रहता है ।।
चेहेरेपर रख मुस्कान नुमाया।
वो अश्क छुपाता रहता है ।।
आंख चुराकर मुझसे मेरा ।
चेहरा वो पढ़ता रहता है ।।
रश्मी मदनकर
09 feb 18
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