Sunday 31 December 2023

माँ भारती

 भूषणकुमार उपाध्याय ह्यांची एक अतिशय आवडलेली कविता..


वेदमंत्रों की ध्वनि में हूँ।

उपनिषदों की वाणी में हूँ।।

गीता का विश्वरूप मेरा तन है।

पतंजलि का योग मेरा मन है।।

भक्त प्रह्लाद ध्रुव के नमन में हूँ।

षड् दर्शनों  के अमर श्रवण में हूँ।।


पुराणों की मोहक कथाओं में हूँ।

दुखी मानव की व्यथाओं में हूँ।।

राम के धनुष का अमोघ वाण हूँ।

कृष्ण का सुदर्शन चक्र महान हूँ।।


लिच्छवी का गणतंत्र हूँ।

राजा पौरुष यथा स्वतंत्र हूँ।।


बुद्ध की करुणा हूँ।

महावीर की धारणा हूँ।।

नानक का संदेश हूँ।

सूफ़ियों का देश हूँ।।


गिरिजाघर की प्रार्थना हूँ।

पारसियों की अग्नि याचना हूँ।।


सर्वे भवन्तु सुखिनः का घोष हूँ।

मानव सभ्यता का प्रदोष हूँ।।

चरक का आयुर्वेद हूँ।

कालिदास का रस संवेद हूँ।।


भरत के नाट्य शास्त्र का संवाद हूँ।

शंकर मंडन मिश्र का विवाद हूँ।।

पाणिनि का व्याकरण हूँ।

आर्यभट्ट का खगोल जागरण  हूँ।।


शिवलिंग अनंत हूँ।

माँ दुर्गा दिगंत हूँ।।

शंकर के त्रिशूल का दुर्धर प्रहार हूँ।

दुष्ट दानव राक्षसों का संहार हूँ।।


उत्तर में हिम का अखंड विस्तार हूँ।

दक्षिण में जलधि का संचार हूँ।


अर्जुन का निष्काम कर्म हूँ।

चाणक्य का राष्ट्र धर्म हूँ।।

शास्त्र की पुकार हूँ।

शस्त्र की झंकार हूँ।

ज्ञान का आलोक हूँ।

विज्ञान का विलोक हूँ।


गंगा का पावन प्रवाह हूँ।

अनेक कल्पों का गवाह हूँ।।

लोक कल्याण की भावना से ओत प्रोत हूँ।

वसुधैव कुटुम्बकम् का प्राचीन स्रोत हूँ।।


माँ भारती के मन का मीत हूँ।

सत्यमेव जयते का गीत हूँ।।

( डॉ भूषण कुमार उपाध्याय, भा पो से, से. नि.)

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